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डिलीवरी बॉय

National issues
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२१ वीं सदी में टेक्नोलॉजी ने हमारे जीने और रहन सहन के तौर तरिकों को बदल कर रख दिया है, फ़ोन और इन्टरनेट ने ज़िन्दगी काफी आसान सी कर दी है | अब खाने से लेकर पहनने तक सब कुछ उँगलियों के इशारे पर मिलने लगा है | पंकज भी इसी दौर का एक आम युवा है जो टेक्नोलॉजी के इस असीम दलदल में गले तक फँसा हुआ है और दिल्ली में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता है |

आज खाना बनाने वाली अम्मा ने छुट्टी ले रखी थी और पंकज ने दोपहर का खाना, खाना पहुचाने वाले एक ऐप से मँगवाया | खाना ले कर आये डिलीवरी बॉय ने पंकज को उसका मँगवाया हुआ खाना सौपा, और पैसे ले कर जाने लगा | पंकज ने पैकेट खोल के देखा और डिलीवरी बॉय को आवाज़ दी, रस्ते में आते समय शायद भारतीय सड़कों की वजह से लस्सी का पैकेट खुल गया था | पंकज ने गुस्से में डिलीवरी बॉय की लारवाही पर उसे काफी खरी खोटी सुनाई | डिलीवरी बॉय ने पैकेट बदल के लाने का आश्वासन दिया जिसपे पंकज राजी हो गया|

कड़ी धूप में निकल कर ५ मिनट बाद ही उस डिलीवरी बॉय ने नया लस्सी का पैकेट पंकज के हाथ में ला कर रख दिया, पंकज हैरान था कि इतनी जल्दी वो पैकेट कैसे ला सकता है जबकि रेस्टोरेंट काफी दूर था | पंकज ने अपनी हैरानी का जब जवाब पूछा तो खुद को कोसने के अलावा उसके पास कोई और चारा ना बचा | उस डिलीवरी बॉय ने कहा “सर, ये मैंने पास की ही दुकान से कर आया हुँ, अपने पैसों से, अगर आप मेरी शिकायत कर देते तो मेरे पैसे काट जाते बल्कि इसमें गलती मेरी बिलकुल ही नहीं है” | ये सुनकर पंकज अब ग्लानि महसूस कर रहा था, और उसने भरपाई करने के लिए ५० रुपये टिप में डिलीवरी बॉय को उसकी ईमानदारी के लिये दे दिये |

६ महीने बाद पंकज अपने मित्र नीरज के घर रुका हुआ था, आज उसके दोस्त ने टेक्नोलॉजी का सदुपयोग कर के खाने का आर्डर दिया | खाना लेकर नीरज ने पैसे दिये, पैकेट खोला और लस्सी का पैकेट खुला मिला | उसने डिलीवरी बॉय को बुलाया और खुला लस्सी का पैकेट दिखाया | डिलीवरी बॉय ने नया पैकेट लाने का अस्वासन दिया |

५ मिनट बाद दरवाजे की घंटी बजी और नीरज ने लस्सी का पैकेट लेकर डिलीवरी बॉय से कुछ बात की और ५० रुपये की टिप दे कर उसे रवाना किया |
पंकज दूसरे कमरे में बैठ कर ये सब सुन रहा था और उसे ये समझने में देर ना लगी की ये डिलीवरी बॉय वही था जिससे ६ महीने पहले उसका सामना हुआ था | लेकिन आज पंकज दुविधा में है, कई प्रश्न उठ रहे है उसके मन में, उससे समझ नहीं आ रहा है कि जो आज हुआ और जो उसके साथ हुआ था क्या वो इत्तेफाक मात्र है या फिर ये एक प्रकार का ठग हुआ है उसके साथ |

ईमानदारी आजकल कोई आम बात नहीं है, लोग अक्सर भोलेपन और मासूमियत का शिकार हो जाते हैं | ईमानदारी हमेशा से ही शक के घेरे में रही हैं और इस शक का नाजायज फायदा उठाना आज आम हो गया है |

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