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बचपन में एक दर्दनाक हादसे में कम्मो के चेहरे का अधिकांश हिस्सा जल चुका था, माँ उस निशान वाली जगह पर हर रोज़ नारियल का तेल लगाती थी, उम्मीद थी की शायद कोई चमत्कार हो जाये | गरीबी का आलम ये था कि दो जून की रोटी मिलना भी मुश्किल था, इलाज़ तो बहुत दूर की बात थी | दिन गुज़रते गए और साथ ही साथ कम्मो भी अब बड़ी हो चली थी, लेकिन चेहरे का वो निशान ज्यो का त्यों ही था|
गरीब किसान की बेटी होना वैसे भी कम न था की उसपर जले हुए चेहरे के साथ जीना | योग्य वर तो दूर की बात थी, कम्मो को देख कर कोई उसे अपनी अर्धांगिनी बनाने का ख्याल भी जी में नहीं लाना चाहता था |
हताशा भरे दिन और बेचैन रातें कम्मो को अंदर ही अंदर खाये जा रहे थे | एक रात के अँधेरे में कम्मो ने खुद को, अपने परिवार पर बनते हुए बोझ से बेहतर घर से दूर शहर जाने का मन बना लिया | कुछ लोगों से शहर के बारें में सुना था उसने और शहर की चमचमाती हुई दुनिया में खुद का अँधेरा मिटने वो चुप चाप घर से निकल गयी |
सुबह घर पर कम्मो के न होने पर माँ बाप को भी उतनी निराशा नहीं हुई | शायद तभी उन्होंने खोज बीन में न ही उत्साह दिखाया और न ही ज्यादा वक़्त ज़ाया किया | उधर कम्मो गाँव के अँधियारे से निकल कर शहर की चकाचोंध से रूबरू हो रही थी | चेहरे पर जले का निशान होने से वैश्यावृति के दरवाज़े उसके लिये पहले से ही बंद थे |
शहर की भीड़ भाड़ में, ऊँची ऊँची इमारतों को निहारते हुए कम्मो ने अपने कदम बढ़ाये, ज़िन्दगी में पहली बार इतनी तेज़ रफ़्तार से उसका सामना हो रहा था |वो हर लम्हे को खुद में कैद कर लेना चाहती थी, वो चहल पहल, वो रौशनी, वो बाजार सब उसके लिये किसी सपने सा हसीन था | उसे पता ही नहीं चला की कब वो कुछ लोगों से अलग हो गयी और सड़क के किनारे को उसने किनारा कर दिया | पीछे से रफ़्तार से आती हुई एक गाड़ी ने कम्मो की रफ़्तार को थाम दिया | देखते ही देखते मौके पर लोगों की भीड़ जमा हो गयी, कम्मो लहूलुहान थी और भीड़ के दबाब में कसूरवार चालक को कम्मो को अस्पताल ले जाना पड़ा |
अस्पताल में कम्मो ने धीरे से अपनी ऑंखें खोली, ज़िन्दगी भर ज़मीन या चटाई पर सोने वाली कम्मो ने पहली बार आरामदायक बिस्तर का आनंद लिया | ये खुसी उस समय उसके दर्द से कहीं बढ़ कर थी, और इसी ख़ुशी के साथ कम्मो ने अपनी आँखें सदा के लिये बंद कर ली |
पुलिस, कचहरी के चक्कर से बचने के लिये आरोपी चालक सारा खर्च व्यय करने को तैयार था | कम्मो ने अपनी आखिरी सांस लेने के बाद भी वेंटिलेटर पर अगले ३ दिन तक अपना बसेरा जमाये रखा | अस्पताल ने कम्मो को मृत घोषित करने से पहले लाखों रुपयों से अपनी तिजोरी भर ली थी |
कम्मो की ज़िन्दगी चाहे जितनी भी सस्ती रही हो, लेकिन मौत लाखों की रही |
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