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मेरा जूता आज भी चमकता है !!

National issues
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बचपन की कुछ स्मृतियोँ  को संकलित करे तो मस्तिष्क में एक कोतुहल सा मच जाता है | कल्पना रूपी जहाज़ हमें समय से परे एक असीम , अद्वितीय , अलोकिक संसार के मार्ग पर प्रसस्त कर देता है | इन्ही कल्पनाओं में छिपी परन्तु शिल्प कि तरह उजागर एक स्मृति मेरे जूते की भी है |
पाठशाला में काले जूते का बहुत महत्व होता हैं , एवं पैर में बंधे दो जूते हमें कई मायनो में ज़िन्दगी की कई जटिल राहोँ पर दृण निश्चयी होकर चलना सिखाते हैं | जूते के फीते बंधना शायद हम सभी की ज़िन्दगी की एक बड़ी चुनौती रही होगी , और इस चुनौती में, मैं भी असफल रहा था | किसी तरह उल्टा सीधा बांध लिया या फिर फीतो को जूते के किनारोँ के अंदर दबा दिया | रोज़ सुबह जूतो को चमकाना एक आदत में शुमार था , इसकी भी कई वजह थीं , पहली ये कि किसी और का जूता मेरे जूते से ज्यादा न चमके, दूसरी सबसे महत्वपूर्ण एवं सम्मानजनक स्थिति, जब प्रार्थनासभा में आपके चेहरे पर आपके जूतो की वजह से एक दन्तुरित मुस्कान आपके रोम रोम को रोमांचित करती रहे | दिन भर शायद हम अपनी इस सुबह की मेहनत और जूतो की चमक पर ध्यान भी नहीं देते थे , लेकिन चाहे जितना भी गन्दा हो जाये अगले दिन cheery blosoom एवं kiwi की वो काली डिब्बियां हमारे चहरे की चमक बढ़ाने के लिए काफी थी | जूते कि चमक के साथ साथ खुद के उज्जवल भविष्य का सपना , भगवान से अपने किसी मित्र से ज्यादा अंक लाने कि कामना , छोटी छोटी बातो में बड़ी बड़ी खुशियाँ तलाशना ,और आज ये सब स्मृतिपटल तक सिमट जाना |

आज भी मेरे जूते रोज़ चमकते हैं , पर आज में उनपर हाथ या कपडा फेरने को भी समय कि बर्बादी समझता हुं | दफ्तर के बाहर बैठे कुछ नौजवान , गंदे कपड़ो एवं मुख पर एक अजीब सा हर्ष लिए हुए दफ्तर जाने वाले बाबूओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और उनके हाथ में cheery blosoom एवं और भी कई किस्म कि पालिश होती है , मेरा मन रोज़ ललचा कर अपने जूतो को चमक देने उनकी ओर आकर्षित हो जाता है | उन तीन मिनेट में, मैं रोज़ अपने बचपन की सेर कर के फिर इस दौड़ धूप भरी लोगोँ की भीड़ में शामिल हो जाता हूँ , आज मेरे चमकते जूतो की तारीफ़ करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं , न ही अपने किसी दूसरे साथी से ज्यादा अपने जूते चमकने की ख़ुशी , पर दिल में एक तसल्ली है कि मेरा जूता आज भी चमकता है |

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