Menu
blogid : 5803 postid : 28

गिर के आज फिर खड़ा हुं मैं

National issues
National issues
  • 36 Posts
  • 16 Comments

ऐसी स्तिथी सबके जीवन में आती है जब हम खुद से भी हार जाते हैं , दुनिया बस एक कड़वी सच्चाई से ज्याद नहीं लगती |
हम खुद को हर मुमकिन सज़ा देने से भी पीछे नहीं हटते और खुद से इतने हारे हुए होते हैं की खुद की नज़र से भी अपना आत्ममंथन नहीं कर पातें |
बहेरहाल जिंदगी का दूसरा नाम ही यही हैं , ये कब हंसा दे और कब किसी की आँखें नम कर दे किसी को नहीं पता |
जब भी हम निराश या परेशां होते है हमें सबसे आखरी रास्ता ज़िन्दगी से हार कर खुदखुशी का लगता है ,परन्तु हम कभी इस के पार नहीं जा पाते | ज़िन्दगी से हारना ही एकलौता रास्ता नहीं होता या यूँ कहें की ज़िन्दगी से हारना कोई रास्ता नहीं होता , ये अंत होता है खुद का और अपने पुरे जीवनकाल के हर खुशनुमा एवं गमगीन लम्हों का |
जब भी हम कभी खुद को कमजोर महसूस करें सबसे पहले भगवन को याद करें , हालाँकि भगवन कुछ नहीं करता पर ह्रदय को कुछ हद तक हल्का ज़रूर महसूस करवाता है | आब भी मन शांत नहीं फिर क्या?
फिर हमारे मन में खुदखुसी का ख्याल आता है पर ये बात हमें ज्ञात होने चाहिए की ये वो पहला रास्ता होता है जिससे हमें लगता है की हम सभी चीजों से बच जायेंगे पर हम खुद को उसी मुसीबत में और उल्ल्झायेंगे तोह हमें ये इस बात का पता चल जायेगा की वो पहला रास्ता ही था |
मुश्किल तो हैं और वो ज्यो का त्यों बनी हुई हैं , फिर क्या?
फिर और आत्ममंथन और आत्मचिंतन , भगवन ने मनुष्य को सोचने की शक्ति दी हैं , खुद से बातें करने का वर दिया हैं और इससे हर उलझन को सुलझाने का रास्ता भी प्रदान किया है , पर सोचना जरुरी है और बहुत ज़रूरी लेकिन सोचने का नजरिया भी सकारात्मक होना ज़रूरी है क्योकि नकारात्मक नज़रिए पहले रस्ते से हमे कभी आगे नहीं बढ़ने देता |
कभी कभी हमें एक चीटी भी ज़िन्दगी का पथ पढ़ा जाती है , तोह ज़रूरत है अपने दिल के दरवाज़े खोलने के और इस हसीं ज़िन्दगी के हर एक पल में जिंदगानी धुन्ड़ने की |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply