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कितने तीर है तेरी तरकश में

National issues
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राजनीतिक नज़रिए से पिछला कुछ समय विपक्ष के लिए सत्तापक्ष की तरफ से जवाबो का तमाचा सा रहा है . देश राजनीतिक उथल पुथल का शिकार हो रहा है और देशवासी इस अकस्मात् बदलाव को समझने में पूरी तरह से विफल रहे है . ये वही जनता है जो कुछ समय पहले कांग्रेस से तंग आ चुकी थी और छुटकारा पाना चाहती थी , लहर पुरे देश में थी लेकिन कूटनीति भी इस सर्कार के खून में थी . देश जब भी एकसाथ उबला है , सरकार ने इसे उबलने दिया और जब लगा लोहा गरम हो चूका है तभी हथोडा मार दिया , नतीजा सरकार के पक्ष में | हमारी समस्या येही है की हम भूलते बहुत जल्दी है और हमारी इस आदत का सबसे ज्यादा फायदा इस देश के ऊच्च पदों पे आसीन आक्काऒ ना उठाया है यदपि येही सत्तापक्ष का सबसे बड़ा हथियार बन के उभरा है | दो आतंकवादियों को फाँसी वो भी दो संसद सत्र के पहले , पूरा खेल साफ़ दिख रहा है , विपक्ष द्वारा उठाये गए हर मुद्दे का मुहतोड़ जवाब दिया गया है और जहाँ जवाब देने में असमर्थ रही सरकार वहां विपक्ष को ही एक सवाल बना दिया | एक प्रतिष्ठित खिलाडी की छवि को राजनीती के गंदे दलदल में उतरना कहा तक तर्कसंगत है , वही उसके खेल जीवन पर अकस्मात् पूर्णविराम लगाना भी सरकार की दुर्बलता की निशानी है |
समय समय जब भी सरकार संकट में आई इसने या तो किसी पुराने तीर का इस्तेमाल किया या फिर कोई नया तीर ही निर्मित कर दिया | लगातार विवाद से सरकार जनता की नजरो में तो है परन्तु अब वो उस छवि को धूमिल कर आईने को साफ़ करने की जाद्दो जेहेद में है | देश का समर्थन वापस पाती सरकार ने विपक्ष के समक्ष ज्यादा कुछ नहीं बस कुछ समय छोड़ा है , और इस कालचक्र की दिशा ही २०१४ की दशा तय करेगी | सत्तापक्ष अगर श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को भारत रत्न से नवाजती है तोह शायद वो विपक्ष के ताबूत में आखिरी कील का काम कर सकती है | परन्तु विपक्ष भी अपने रामबाण के तर्ज पर २०१४ के सपने खुली आँखों से देख रहा है | ये कितना कारगर होगा समय से बेहतर कोई और नहीं बता सकता | और ये भी नहीं बता सकता कि और कितने तीर है तेरी तरकश में |||

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